शर्म और झिझक को कम कैसे किया जाये।
शर्म या झिझक महसूस करना एक आम समस्या है। जिसके कारण हम जीवन में हम वो परिणाम नहीं पा पाते जिसके हम हकदार होते हैं।आईये जानने की कोशिश करते है कि हम कैसे शर्म और झिझक को कम करके आत्मविश्वाश प्राप्त कर सकते हैे।
बेइज्जती होने से क्या ड़रना।
अक्सर हमको इस बात की बड़ी फिक्र होती है कि जो कि हम कर रहे हैं उस पर समाज की प्रतिक्रिया कैसी होगी कहीं हमारी खिल्ली न उड़ायी जाये कहीं हम उपहास का विषय तो नहीं बन जायेंगे।
विचार करने योग्य बात यह है कि यदि हम कोई भी कार्य ये सोच कर कर रहे हैं तो कि उस पर दूसरों की प्रतिक्रिया कैसी होगी तो सर्वप्रथम हम उस विश्वाश पर ही उंगली उठाते हैं जिस लिये हमने उस कार्य को चुना था और जब हम ऐसा करते है तो हम शतप्रतिशत उस कार्य में अपना सम्पूर्ण समर्पण नहीं कर पाते और कहने कि कोई जरूरत नहीं है कि ऐसा कार्यों की सफल होने की सम्भावना क्या होगी।
हमको इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिये कि हमारी किरकिरी हो जायेगी, हमारे मन में वैसे ही सवाल ही सवाल होते हैं हम खुद से ही जंग लड़ रहे होते हैं हमको लगता है कि सारी दुनियाँ बस हमको ही देख रही है और हमारा ही आंकलन कर रही है जो कि बिल्कुल भी सत्य नहीं है।सभी लोग सारी दुनियाँ अपने ही जीवन में इतनी उलझी हुई है कि किसी को किसी के लिये समय नहीं है और न ही किसी को किसी की परवाह है। शर्म और झिझक को छोड़े और ये कभी न सोचें कि बेइज्जती हो जायेगी।
सिर उठा कर बात करना शुरु करें।
शर्मऔर झिझक से ग्रसित लोगों की यह पहचान होती है कि वो जब भी किसी से बात करते हैं जो हमेशा बहुत कम आत्मविश्वाश से बात करते हैं और सर झुका के दूसरों से बात करते हैं जिससे उनकी बातों में विश्वसनीयता दृष्टिगोचर नहीं होती है उनकी बातों का प्रभाव श्रोता पर नहीं होता।
जब भी किसी से बात करें तो आखों में आखें डाल के बात करें लेकिन इस का ध्यान रखें कि आखों में देखकर बात करना और घूरना दोनों अलग बात हैं और दोनों के फर्क का समझते हुये बात करें मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि धीरे धीरे आपकी शर्म और झिझकने की समस्या कम होने लगेगी और आपकी बात को महत्व मिलना शुरु हो जायेगा।
खुद को कम न समझें।
हर व्यक्ति प्रकृति का सृजन है और प्रकृति ने किसी को भी बनाने में कोई भी भेदभाव नहीं किया है हर किसी के पास अपने गुण हैं और अपनी कमियाँ हैं आप विशिष्ट हैं और ये मैं सिर्फ औपचारिकता के लिये नहीं कह रहा हूँ बल्कि आप यकीनन हैं अगर कोई आपको विशिष्ट होने से रोक रहा है तो वो आप खुद हो। क्योंकि जिसने ये दुनियाँ बनायी उसने तो आपको बहुत विशिष्ट ही बनाया था आपने ही खुद को कभी महसूस नहीं किया इसमें किसी को भी दोष नहीं हैं आपके सिवाय।
खुद को पहचाने अपनी खूबियों का महसूस करें उनको खुद में तलाश करें क्योंकि बिना खूबियों के तो किसी को बनाया ही नहीं गया है। आप किसी से ज्यादा नहीं हैं तो किसी से कम भी नहीं है, हर परिन्दे की अपनी उड़ान हो सकती है लेकिन इसका ये अर्थ नहीं है कि आपकी कोई उड़ान नही है। अपनी शर्म और झिझक को परे रखते हुये खुद को समझने की कोशिश करें और आत्मविश्वाश के साथ ये महसूस करें कि आप विशिष्ट हैं और उसी तरह के कार्य करने शुरु करें|
घबराना क्यों है।
शर्म और झिझक व्यक्ति के आत्मविश्वाश को इतना कम कर देते हैं कि उसको अगर कुछ लोगों का सामना करना पड़ जाये तो उसको घबराहट होने लगती है। मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि आखिर घबराना क्यों है। माना कि हम परफेक्ट नहीं हैं तो क्या परफेक्ट होना जरूरी है।
परफेक्ट होना बिल्किुल भी जरूरी नहीं है उसकी कोई भी आवश्यकता नहीं है। समझदार होना ज्यादा जरूरी है, बुद्विमान होने से ऐसा मुझे लगता है क्योंकि ये जीवन को समझने के लिये ज्यादा आवश्यक है।समझदारी ऐसा गुण है जो समय के साथ सीखा जा सकता है जिसमें कोई कठिनाई नहीं है।
धीरे धीरे और संभल कर बात करें।
आपने अक्सर देखा होगा कि जो भी अच्छे वक्ता होते हैं वो थोड़ा रूक रूक के बात करते हैं ताकि अपनी बात को जमा के पेश कर सकें और जब आप अपनी बातों को अच्छे ढ़ंग से पेश करते हैं तो आपकी बातों में प्रमाणिकता बढ़ती है और आपको समाज मे सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।
जब किसी भी व्यक्ति के जीवन मे ऐसा होता है तो उसकी शर्म और झिझक खुद ब खुद उससे दूर होनी शुरु हो जाती है और आत्मविश्वाश और समृ़िद्व उसके पास आती चली जाती है।
मेरी आषा और उम्मीद है कि जब आप इस ब्लाॅग को पढ़ेगेे तो आप खुद को विषिश्ट महसूस करेंगे और अपनी खूबियों को महसूस करने की कोशिश करेंगे और अंततः उनको ढूंढ ही लेंगे और अपनी शर्म और झिझक को हमेशा के लिये अलविदा कह कर एक खुशहाल जीवन जियेंगे जिसके कि आप हकदार हैं।