मन कहीं लगता क्यों नहीं हैै। ये मन और दिमाग का भटकाव क्यों है।

मन बडा अजीब है।

मनुष्य का मन एक अजीब पहेली है। चाहे कुछ भी हो किसी के पास या नहीं हो। कोई कमी हो या ना हो। कोई अच्छा हो या न हो, किसी भी स्थिति में क्यों न हो किंतु मानव की मन की दशा ये है कि वो कहीं लगता ही नहीं ।
जहां हम आज हैं वहां से हम कहीं दूर होना चाहते हैं। चाहे हमने यही होना मांगा था। किंतु आज वो हो जाने के बाद भी हम अब वहां नहीं होना चाहते हैं।
जो कही नहीं लगता वही तो मन है उसी का नाम तो मन है जो बैचेन है
अगर कोई ये कहता है कि मन को शांत कैसे करें तो मैं कहूँगा कि ये सवाल ही गलत है क्योंकि शांत होने वाली भावना कभी मन हो ही नहीं सकती।

मन की शांति की तलाश।

मन की शांति को कभी भी पाया नहीं जा सकेगा ये प्रयास ही गलत है और इसी का परिणाम ये है कि जो भी लोग मन को शांति और सुकून पाने की तलब से संयास या अन्य कोई भी उपक्रम करते है वो एक दिन निराश हो जाते है और उससे भी ज्यादा दुखी और अशांत हो जाते हैं जैसे कि वो संयास लेने से पहले थे।
मन की शांति की खोज ही गलत हैै। खोज होनी चाहिये अमन की।
मनुष्य की ऐसी स्थिति जहाँ मन ही नहीं है जहाँ सोच ही नही है जहां न तो कुछ अच्छा है और न ही कुछ बुरा है। जहाँ मन है वहाँ अशांति होना स्वाभाविक है क्योंकि मन और अशांति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

मन एक बंदर की तरह कार्य करता है।

मन एक सोच से दूसरी सोच पे कूदने वाला बंदर है और इसी तरह काम करना उसका व्यवहार है मन की प्रवृति ही ऐसी है जैसी किसी बंदर की होती है । जैसे किसी बंदर को कभी एक पल का चैन सुकून नहीं है उसी तरह मानव मन की प्रवृति है उसको भी एक पल का सुकून नहीं है।
हमारा हमेशा से मन के साथ का रिश्ता ये रहा है कि हमने उसको कहीं न कहीं लगाना चाहा है और उसने हमें हमेशा निराश किया है। क्योंकि हमसे बुनियादी भूल ये हुई है कि जिस वस्तु की प्रवृति में ही कहीं लगना ही नहीं है उसने लगना कहाँ है।
हमने कभी मन पर गौर करने की कोशिश नहीं की न ही कभी हमने ये अनुभव करने की सोची कि मन के अशांत होनी की वजय क्या है। यदि कभी हम कुछ हासिल कर भी लेते हैं जो कि मन ने चाहा है तो क्या मन को सुकून मिल जायेगा जो उसका जवाब होगा नहीं क्योंकि मन की प्रवृति ऐसी है कि यदि कोई चीज हमें मिल भी जाये तो मन उसको मूल्य कर देता है और किसी भी नई चीज को पाने की तमन्ना शुरू कर देता है और उतना ही अशांत हो जाता है जितना कि वो पहले था।

ध्यान के पलों में मन शांत हो जाता है।

मन वहीं पे शांत और मस्त होता है जहां पे व्यक्ति किसी ध्यान के पलों में होता है जैसे कि वो कोई मनपसंद खेल खेल रहा होता है या कोई ऐसा कार्य कर रहा होता है जो कि व्यक्ति की पसंद का होता है उसमें मन को शांति और सुकून रहता है यह बात ये साबित करती है कि यदि मन को किसी ऐसी अवस्था में ड़ाला जाय जो कि उसकी रूचि का है और जिस कार्य में ध्यान दिया जाता है तो वहां पर मन अनुपस्थित हो जाता हो है आप वहाँ पर उस कार्य में या उस खेल में ऐसा खो जाते हो कि मन कहीं अमन में बदल जाता है।
अमन है मन की अनुपस्थित होना यही वो स्थिति है जो आपको शांति देगी सुकून देगी आप को जीवन जीने में मजा आने लगेगा। आप खुशी महसूस करेंगे। जीवन खुशहाल होगा। यही मैं आशा करता हूँ।

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