हमको खुशी के लिये अपना सोचने का तरीका बदलना होगा।
हमारी सोच ही हमारी मित्र और शत्रु दोनों है। हम अपनी सोच से ही अपनी दुनिया का निर्माण करते है। हमारी सोच ही हमारे चारों तरफ की दुनियाँ को देखने का हमारा नजरिया है। जैसे कि विवेकानंद जी ने कहा है कि जैसा हम सोचते है हम वैसे ही हो जाते है। क्योंकि हमारी सोच हमको उसी दुनिया में ले जाती है जैसे हम सोचते रहते है।
हम या तो भविष्य में जी रहे है या अतीत में जी रहे है। वर्तमान में जीने का तो हम सोचते ही नहीं हैं और जिन्दगी की नदी तो वर्तमान में बह रही है वो तो न भविष्य में है, न अतीत में।
वर्तमान तो जैसे हमारे लिये है ही नहीं । मनुष्य जहाँ है वो बस वहाँ के अलावा हर जगह होना चाहता है। वो बस वो नहीं होना चाहता जो वो वर्तमान में है।
सोच की भूमिका है महत्वपूर्ण
मनुष्य बस ये सोच रहा है कि मैं ये हो जाऊँगा तो मैं खुश हो जाऊँगा, किंतु जिस दिन वो ये सब हो जाता है तो वह पाता है कि वो उतना ही खाली है,उतना ही अकेला है । जितना वो किसी भी चीज को पाने से पहले था। फिर ये सोच उत्पन्न होती है कि जब हमको लगता था कि ये मंजिल तो हमें खुशीयोें से भर देगी तो फिर वही खाली पन और जीवन में वो कमियाँ क्यों नजर आती है।
वर्तमान को समझना है जरूरी
मनुष्य को ये समझना चाहिये कि जो वो वर्तमान में है वही उसका फिलहाल के लिये अन्तिम सत्य है। किन्तु अगर वो उससे पूर्ण संतुष्टि नहीं है तो उसको बदलने के लिये प्रयास कर सकता है, और बदल भी सकता है। ये सोचने का सीधा और स्पस्ट तरीका होगा और इसमें सोच की स्पस्टता होगी ये भी जानकारी होगी कि क्या बदलना है और ये भी कि कितना बदलना है।
खुशी आज में ही है।
खुशी और शांति अगर कहीं है तो वो आज में है। क्योंकि आने वाला कल अभी आया नहीं है और बीता हुआ कल अब आने वाला नहीं है तो अगर कोई चीज है और उसका कोई प्रभाव है तो वह है आज, यही सत्य है जो मैं आज हूँ, वही मैं हूँ, और अगर कोई बदलाव लाना है तो आज ही मैं बदलाव लाना हैै।
हमारा आने वाला कल हमारे आज से ही निकल कर जाता है। आज को बेहतर बनाना, बेहतर कल की तरफ कदम बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका है।