खुशी पाना आपका हक है |
मनुष्य ने खुद को जीवन के भूलभुलैया में इतना उलझा लिया है कि वह भूल ही गया हैकि वह खुसी पाने का अधिकारी है।किन्तु वह सुबह से शाम तक उम्मीदों के ऐसे जंजाल में उलझ गया हैसब कुछ जानते हुये भी आखिर क्यों हम रोज वही गलती करतेहै,ंउसकी वजय ये है कि हर मनुष्य खुद को अपवाद मानता है कि जो हर किसी के साथ होता है वो उसके साथ नहीं होगा। बीमार कोई और होता है, मौत किसी और ही होती है। जीवन मेंकष्ट किसी और के हैं मेरे नहीं होंगें। मेरी मौत नहीं होगी। ये सब किसी और के साथ होगा मगर मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं होगा।
झूठी उम्मीद न करें।
जीवन से की गई झूठी उम्मीदें ही दुःख को जन्म देती हैं।झूठी उम्मीदें करने में मनुष्य ने महारत हासिल कर ली है।क्योंकि बिना इसके उसका जीवन नीरस हो गया लगता है उसको, रोज खुद को उम्मीद के लिये परेषान करना और दुःख पाना उसकी नियति हो गयी लगती है।सामान्यतः हर विचार को और दार्षनिक इस बात पर जोर देता है कि मनु किंतु ये सत्य नही ंहै।जिसका जीवन शुरू हुआ है उसका अन्त भी उतना ही सत्य है जितना कि उसका आगाज।कोई भी जीव अपवाद नहीं है,सबको एक न एक दिन ये किरायेका घर खाली कर के जाना है।
अंत रखो याद
मनुष्य को अपना अंत हमेषा याद रखना चाहिए और उसको याद रखते हुये ही अपने कार्य करने चाहिए। किंतुइस विचार में लोग अक्सर षिकायत करते हैं कि हर दिन अपनी मौत को याद करते रहने से जीवन के प्रति उदासीनता आती है और ये सोच जीवन पर हावी हो जाती है कि अगर एक दिन सबकुछ खत्म हो ही जाना है तो आज ही हो जाये।
अगर सब कुछ खत्म ही हो रहा है तो क्यों खुद को कर्म की भट्टी में झोका जाये।तो क्यों खुद को परेषान किया जाये क्यों खुद को आार्थिक रूप से मजबूत बनाने, समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाने के लिये इंसान क्या नहीं करता।तो फिर एक जगह पर बैठ जाया जाये और जीवन के खुद ही खत्म हो जाने का इंतजार किया जाये।
मेरा लक्ष्य
ऐसे ही कई सवाल हैं जिन्होने मुझे ये ब्लाॅग की श्रृंखला शुरू करने पर विवष किया, मन का भटकाव, कुछ खोने का हर समय लगा हुआ ड़र जैसे न जाने कितने ही विषय हैं जिनपे मुझे अपनी बात आप तक पहुँचानी है।
खुसी पाना आपका हक है। और आप ये कैसे पा सकते हैं, इस विशय पर ही हम बात करेंगे, यही मेरा लक्ष्य है,और आपका हक भी।