बेकार की बातों से खुद परेशान होना बंद कीजिये। जीवन को जीना शुरू कीजिये।

आप परेशान क्यों हो।

मैंने अपने जीवन के कई स्वर्णिम वर्ष ऐसी सोचों को सोचने में बिताये जिनका कोई भी वजूद नही था। वो समस्याएं थी ही नहीं वो मुझे तब समझ में आया जब मेरा बहुत सा समय बर्बाद हो गया। वो समस्याएं सिर्फ और सिर्फ मेरी कल्पनाओं में ही थी। उनका यथार्थ जीवन से कोई लेना देना था ही नही।
हमारा दिमाग हमेशा हमें बुरे से बुरे ख्यालों में फंसा के रखता है और वो ख्याल 99 प्रतिशत नकारात्मक ही होते हैं। हमेशा ही किसी अपने को खोने का ड़र, कुछ पाने से पहले उसके चले जाने का ड़र, किसी से मिलने से पहले उससे बिछड़ जाने का ड़र, ऐसी ही सोचों को सोचते- सोचते ही जीवन भर इंसान एक दिन ये दुनियाँ छोड़ कर चला जाता है।

हमारा दिमाग बहुत अच्छा नौकर और बहुत घटिया मालिक होता है।

हमारा दिमाग बहुत अच्छा नौकर और बहुत घटिया मालिक होता है। जब हम अपने जीवन की मालिकियत अपने दिमाग को देते हैं तो ऐसी काल्पनिक दुनियाँ में ले जाता है। जहाँ दिमाग के बनाये हुये जंजाल हमें सच महसूस होते है।
जबकि जीवन का सत्य ये है कि जितना हम देखते हैं महसूस करते हैं जो हमें लगता है कि ऐसा होगा, मुझे नहीं यकीन कि उसका 5 प्रतिशत भी हमारे जीवन में होता है।
तो सवाल ये खड़ा होता है कि क्या हम अपने जीवन की प्रति उदासीन हो जायें कुछ भी न सोचें। हमारा जीवन के प्रति कैसा नजरिया होना चाहिये। क्योंकि व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर से बेहतर बनाने का प्रयास तो करता ही है और अगर वो कुछ भी सोच विचार कर रहा है तो उसका एक ही उद्देशय यह है कि वो जीवन में बेहतर होना चाहता है।

परिणाम आपके हाथ में कभी नहीं होगा किंतु प्रयास हमेशा होंगे।

मेरा आपसे एक ही सवाल है कि आज तक आपने जो भी करना चाहा जो भी पाना चाहा कितना आप उसके नजदीक पहुँच पाये, या मैं ये कहूँ कि कितना प्रतिशत आप सफल हुये आप भी जानते हैं कि प्रतिशत बहुत ही कम था, जबकि ऐसा नहीं कि आपने प्रयास नहीं किये। आपने जी जान से प्रयास किया जो आपसे हो सकता था आपने कोई भी कमी नहीं रखी ,अपने प्रयासों में। फिर ऐसा क्या हुआ कि परिणाम नहीं आया।
क्योंकि परिणाम आपके हाथ में कभी था ही नहीं और कभी होगा भी नहीं। आपको लगता है कि आप के करने से कुछ हो सकता है किंतु जैसे -जैसे आप जीवन के वर्षों को व्यतीत करते चले जायेंगे आप को समझ में आना शुरू हो जायेगा कि सिर्फ आपके चाहने से परिणाम नहीं निकलते। कोई न कोई और भी निर्धारक तत्व हैं जो परिणाम को प्रभावित करते हैं। वो कौन हैं और कैसे जीवन को प्रवाहित करते हैं ये विचार करने जैसा विषय है।

अनुभव है कीमती…

मेरा जीवन का अनुभव ये रहा है कि अपने करने से कुछ होता नहीं है। मैं आज तक एक भी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिला हूँ जो अपने लिये बुरा चाहता हो। परन्तु ऐसा नहीं हेाता कि जो हम चाहें वो हमको मिले।
ये विचार करने योग्य बात है कि क्यों ऐसे होता है कि चाह कर भी वो नहीं हो पाता जो हम पाना चाहते हैं या जो हम करना चाहते हैं। इसको चाहे कोई क्या नाम दे मगर मैं ये मानता हूँ कि कुछ न कुछ पूर्व निर्धारित जैसा कुछ होता होगा।
हालांकि मैं भी इसको पूर्ण विश्वाश के साथ कहने से बचना चाहूँगा क्योंकि मैं अपने कहे हुये वक्तव्य को साबित नहीं कर पाऊँगा। क्योंकि इसके मेरे पास प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। किंतु मैं इतना जरूर कहना चाहता हूँ कि हमारे करने से कुछ नहीं होता इसलिये हमें जीवन की बहुत ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिये। बस वर्तमान का ठीक करने का प्रयास करना चाहिये क्योंकि इसी वर्तमान से निकल कर एक दिन हमारा भविष्य आयेगा। अगर आज वर्तमान ठीक हो गया तो कल भविष्य भी ठीक ही होगा।

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