हम हमेशा ये कहते हैं कि ये मेरी आदत बुरी है और मैं इसे ठीक करना चाहता हूँ। मगर हम आदतों में बदलाव नहीं ला पाते। जबकि हम आदतों को ठीक भी करना चाहते है फिर भी हमको आदत बदलने में प्रायः सफलता नहीं मिलती
क्यों हैं आदतें इतनी बड़ी
क्या आदतें हमसे इतनी बड़ी हैं बलवान हैं जो कि अक्सर वो हमसे जीत जाया करती हैं, अधिकांशतः लोग तमाम उम्र उन्हीं आदतों के साथ अपना जीवन निर्वाह कर लेते है। उस शिकायत के साथ कि हमने तो बहुत कोशिश की मगर हम अपनी आदतों को नहीं बदल पाये,
कुछ लोग दूसरे तरह से इस पर कार्य करते हैं वो अपनी गलत आदतों के वकील बन जाते हैं और उनको सही ठहराने की दलील देने लग जाते है। उनकी भी जिन्दगी उन्हीं दलीलों को देते देते गुजर जाती हैं।
क्यों है
जीवन निर्माण करती हैं आदतें
आदतें हमारे जीवन का निर्माण करती हैं। अगर ये कहा जाये तो गलत नहीं होगा क्योंकि ये आदतें ही तो जो किसी को बेहतर खिलाडी बेहतर बिजनेश मैन बेहतर राजनीतिज्ञ बेहतर कर्मचारी बनाती है और किसी को शराबी,जुआरी ,स्मैकिया, सटोरिया बनाती है।
किंतु मजेदार बात ये है कि शराबी भी बेहतर खिलाड़ी बनना चाहता है बेहतर बिजनैस मैन बनना चाहता हैै। किंतु वो शराब पीने की आदत से इतना मजबूर हो गया है कि इसके अलावा उसको चाहकर भी कुछ सूझता नहीं है वो चाहकर भी अच्छा बिजनैश मैन बनने के लिये जो उसको चाहिये वो उसको अपना नहीं पा रहा है।
ये तो हो गयी समस्या की बात समस्या की बात, समस्या तो सबकी समझ में आती है कि हाँ समस्या तो हमको भी पता है किन्तु इसका हल क्या है। हल ही तो सबको जानना है कि क्योंकि समस्या तो सबको ही पता होती है।
शुरूआत है समस्या को स्वीकार करना।
ऐसा माना जाता है कि शुरूआत हमेशा ही कठिन होती है और यही वजय है कि लोग अक्सर जब भी किसी कार्य को शुरू करते हैं या कुछ सीखन शुरू करते हैं तो शुरू तो वो बहुत जोश में करते है मगर कुछ ही दिनों में वो सारा जोश हवा हो जाता है। क्योंकि शुरूआत मुश्किलों से भरी होती हैै। आदतों के मामले में ये प्रक्रिया और भी जटिल हो सकती है क्योंकि अपनी आदतों को गलत मानने के लिये भी बहुत बड़ा दिल चाहिये । मानव स्वभाव ही ऐसा है कि खुद को गलत मानना थोड़ा जटिल कार्य हैै।
अपनी बुराई को देखना सीखिये।
प्रायः हमको सारी दुनियाँ में बुराई नजर आती है खुद को छोड़कर, हम खुद के बहुत अच्छे वकील और दुनियाँ के लिये बहुत अच्छे जज होते हैं। असल में यही सबसे बड़ी समस्या है कि जब तक हम ये न स्वीकार करें कि ये आदत हमारी अच्छी नहीं है और उसको दिल से स्वीकर न करें तब तक आदत बदलने की प्रक्रिया का शुरू होना असंभव है।
खुद को स्वीकार कीजिये।
जब हम किसी आदत को स्वीकार कर लेते हैे मान लेते है कि हमको इस आदत को बदलना है फिर ये सोचने का वक्त है इस आदत को बदलने के लिये हमको कौन से कार्य करने चाहिये।
उदाहरण के तौर पर अगर कोई सुबह उठने की आदत का विकाश करना चाहता है तो उसको पहले ये सोचना चाहिये कि वो आदत उसके लिये जरूरी क्यों है।इस आदत से उसको क्या क्या लाभ हो सकते हैं ये आदत उसके जीवन में क्या बदलाव ला सकती है । ये आदत को अपनाने से उसका मानसिक शारीरिक विकाश किस स्तर पर होगा।
जब हम किसी आदत से अपने दिमाग को ये समझाते हैं कि इससे हमको कितना लाभ होगा तो हमारा दिमाग उस कार्य को महत्व देना शुरू करता है और हम दिन में कई कई बार इस बात को जब देाहराते हैं कि हमको इस आदत को शुरू करना ही चाहिये तो आदत को बदलने की शुरूआत होती है।
अच्छी आदतों के लिये खुद को पारितोषिक दीजिये।
जब हम किसी अच्छी आदत के लिये खुद को पारितोषिक देना शुरू करते है तो फिर हमको आदतों को करने में मजा आना शुरू हो जाता है जैसे कि हम चाॅकलेट खाने के षौकीन है मगर वो सेहत के लिये अच्छी नहीं है तो हम ये कर सकते हैं कि खुद से वादा करे कि जिसे दिन मैं 10 कि0मी0 पैदल चलूँगा उस दिन मैं अपनी पसंद का खाना खाऊँगा। इस तरह से हम आदतों में बदलाव लाकर हम जीवन को साकार और सफल बना सकते है।